जैसा की हम सब जानते है की यूपी में एक दौर ऐसा भी था जब BJP की पकड़ यूपी में ना मात्र थी और सरकार बनाने की होड़ केवल दो पार्टीयो के बीच थी यानी की सपा और बसपा के बीच लेकिन ऐसा क्या घटित हुआ पिछले कुछ सालो में की समाचार खबरों से मायावती और उनकी पार्टी गायब हो गयी। इतना ही नही अब उनके समर्थको की कार पे से बहुजन समाज पार्टी के झंडे भी गायब हो गए। ऐसा क्या हुआ पिछले कुछ सालो में बसपा लगभग खत्म हो गयी। और बसपा को खत्म करने के पीछे दिमाग किस व्यक्ति का था।
कैसे हुई शुरुवात?
सन 2010 के बाद का समय है और बसपा की सरकार प्रदेश में है और मुख्यमंत्री है मायावती और ये वही दौर है जब अमित शाह बतौर पार्टी के कार्यकता यूपी में है। इस समय अमित शाह इतने भी मसहूर नही है की आम जनता उन्हें जाने और शायद मायावती भी अमित शाह के इरादों से अनजान है। उन्हें लग रहा है की BJP का कोई आम कार्यकर्ता यूपी में पार्टी के कार्य से आया हुआ है। लेकिन मायावती इस बात से अनजान है की यही अमित शाह यूपी में रहकर पार्टी का काम तो कर ही रहा है लेकिन साथ साथ ही बसपा की कब्र भी खोद रहा है। वर्ष 2012 में फिर विधानसभा चुनाव हुए और बसपा हार जाती है और समाजवादी पार्टी की सरकार बनती है और अखिलेश यादव CM।
2013 में मोदी जी को BJP की तरफ से पार्टी प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोसित करती है और तब तक अमित शाह संगठन को इतना मजबूत कर चुके थे की किसी भी पार्टी का अब सीधे BJP से टकराना घाटे का सौदा लग रहा था।
अमित शाह की मेहनत का पहला परिणाम कब देखने को मिला?
जब 2014 के लोकसभा चुनाव का परिणाम आया। जहाँ पे एग्जिट पोल यूपी में BJP को 8 से 15 सीट दे रहे थे वही पे बसपा को 40 से 45 सीट का अनुमान था लेकिन परिणाम आते ही एक दुख की लहर उन लोगो के लिए फैल जाती है जो BJP के विरोधी थे। BJP led NDA ने तो मानो थोक के भाव सीटे जीती हो 80 में 74 सीटे जीत ली और विरोधियो को लग रहा की मानो ये सच नही बल्कि सपना हो। TV चैनलो में हड़कंप से मचा हुआ है की कैसे आखिर कैसे BJP 74 सीट यूपी में जीत सकती है और एक ऐसी भी पार्टी थी जिसके नेता गस्त खा के गिर चुके थे और उस पार्टी का नाम था बसपा जी हा वही बसपा जिसकी 2012 तक यूपी में सरकार थी और अब ठीक 2 साल बाद उसके नेता गस्त इसीलिए खा रहे थे क्योंकि बसपा का खाता ही नही खुला था। जी हा सही सुना आपने वही बसपा जिसकी 2 साल पहले यूपी में सरकार थी अब वो 2 साल बाद 0 सीट पे सिमट गयी। अब पूरा यूपी जान चुका था की वो ढाढ़ी वाला व्यक्ति जो अमित शाह आया था वो आने वाले समय में भारत का नया राजनीतिक चाणक्य कहलायेगा।
क्या मायावती ने फिर बसपा को जिंदा करने की कोशिश नही की?
कोशिश की गयी लेकिन फिर 2017 के विधानसभा चुनाव आ गए और इस वक्त तक भी बसपा के नेताओ का आत्मविश्वास उठ नही पाया है। लिहाजा अखिलेश यादव की पार्टी ने खुद को BJP के सबसे बड़े चैलेंज के रूप में स्थापित कर लिया था। मायावती पीछे रह जाती है और चुनाव होते है और परिणाम आते है और लोग टीवी से चिपक कर बैठे हुए ये देखने के लिए उनके प्रदेश में कौन सी पार्टी की सरकार बनती है। टीवी पर दिखता है की सबसे पहला खाता खुला है मायावती की पार्टी बसपा का और इतने में बसपा के कार्यकर्ता और नेता खुसी मनाने लगते है लेकिन उन्हें कहा मालूम था की ये खुसी अब दुख में परिवर्तित होने वाली है और अचानक ही BJP की जीती हुई सीटों की संख्या बढ़ने लगती है और अब BJP के कार्यकर्ता खुसी मनाने लगते है। लेकिन BJP की बढ़ती हुई सीट का भी नंबर रुक जाता है लेकिन BJP के कार्यकर्ता दुखी नही होते क्योंकि जिस नंबर पे आकर BJP की सीट रुकी थी वो नंबर था 325, जी हा BJP ने 403 में से 325 सीट जीत कर इतिहास बना दिया था और इतिहास बनाने के बाद योगी जी को मुख्यमंत्री। अब यहाँ पर सपा बसपा का करियर खत्म सा लग रहा था और अब कॉम्पटीशन इन दोनो की बीच था की कौन BJP के सामने खुद को सबसे बड़ा चैलेंज के रूप में पेश कर पायेगा और इस लड़ाई में सपा जीत जाती है।
दूसरी कोशिश कब की मायावती ने पार्टी को ऊपर उठाने की?
सन 2019 में फिर लोकसभा चुनाव होने है। इस बार BJP के खिलाफ सपा बसपा ने गठबंधन कर लिया ये सोच के BJP को कमजोर करना है लेकिन नतीजा एक दम उल्टा आया क्योंकि मायावती का साथ देकर अखिलेश यादव ने खुद की पार्टी को कमजोर कर लिया और केवल 5 सीट पर रुक गए और वही पे मायावती को जीवनदान मिला क्योंकि उनकी पार्टी 8 सीट जीती थी, और BJP का क्या साहब वो तो फिर से केंद्र में सरकार बनाने जा रही थी।
मायावती की पार्टी का अभी क्या हाल है?
मायावती और उनकी पार्टी दोनो ही खबरों से गायब है। उनके समर्थको ने अपनी गाड़ियों से पार्टी के झंडे उतारना शुरू कर दिए है। मायावती भी कही न कही ये समझ गयी है की वो BJP के वर्तमान संगठन और नेतृत्व को चुनौती देने के हालात में नही है। इसीलिए उन्होंने चुप्पी साधना ही उचित समझा है।
लेकिन आज भी नाम तो है की BSP के पास देश की 85% जनता का समर्थन है। लेकिन मुझे नही लगता की जब तक BJP का संगठन कमजोर नही होगा तब तक BSP की वापसी संभव है।
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आर्टिकल पढ़ने के लिए धन्यवाद।